दहेज प्रथा पर निबंध कक्षा 9 10 11 के लिए

प्रिय दोस्तों हम बताने वाले हैं एक ऐसी बुराई के बारे में जो समाज में विशाल अजगर की तरह अपना विकराल तथा काफी भयानक मुँह फैलाने वाली कुरीति दहेज प्रथा… के बारे में।जी हाँ दहेज एक ऐसी सामाजिक बुराई है जो दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। आज हम दहेज प्रथा पर निबंध के माध्यम से इस विषय पर रोशनी डालेंगे।
दहेज़ प्रथा क्या है – पहले के ज़माने में जब किसी लड़की की शादी होती थी तो पिता अपनी ख़ुशी से अपनी बेटी को कन्यादान के समय उपहार देता था, लेकिन वही रीति आज सामाजिक बुराई बन गयी है। इसी बुराई का नतीजा है कि लोग लड़की का जन्म ही अशुभ मानते है, आज के समय में कन्यादान माता पिता के लिए बोझ बन गया है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है। पिछड़े भारतीय समाज में यह कुप्रथा अभी भी विकराल रूप में है।
दहेज़ प्रथा का नारी जाती पर प्रभाव – दहेज की इस कुरीति के कारण नारी जाती के साथ अमानवीय व्यवहार होता है। यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि लड़कियों को बोझ समझा जाता है।
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समाज के गरीब वर्ग के लोग अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के बजाय काम पर भेजते हैं ताकि कुछ पैसे कमा सकें जो भविष्य में उनकी शादी पर काम आएं।
- दहेज़ प्रथा के कारण कई बार देखा गया है कि महिलाओं को एक जिम्मेदारी के रूप में देखा जाता है और उन्हें अक्सर अधीनता हेतु विवश किया जाता है।
- भारत में 20% लड़कियां शिक्षित और पेशेवर रूप से सक्षम होने के बावजूद अविवाहित रह जाती है क्योंकि उनके माता पिता विवाह पूर्व दहेज की मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं ।
- अपने देश में जहाँ नारी को दुर्गा, लक्ष्मी कहा जाता है वही दहेज के नाम पर नारी के साथ मारपीट की जाती है, ऐसे में वह महिला आत्महत्या कर लेती है या फिर ससुराल पक्ष ही महिला को फांसी पर लटका देते है, या आग लगा कर मार डालते है।
- अभी हाल ही में करनाल का एक मामला सामने आया जहाँ लड़का व लड़की दोनों ही शिक्षित होने के बावजूद दहेज की माँग की जाती है जिसके पूरी न होने पर वर पक्ष ने फेरों के लिए मना कर देता है।
दहेज प्रथा कैसे रोकें – आज हम किसी भी शादी में जाते हैं तो सबसे पहले यही पूछते हैं कि शादी कितने में हो रही है? कितना दहेज मिल रहा है? समाज के सभी वर्ग आज दहेज प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत के किसी भी वर्ग के परिवार में आपको इसका नजारा मिल जायेगा। खासतौर पर समृद्ध परिवारों में दहेज लेने की होड़ लगी रहती है। दहेज प्रथा पर निबंध कक्षा 9 10 11 के लिए
आप सीधे – सीधे किसी से पूछिए कि भाई आप दहेज के खिलाफ हैं या इसके पक्ष में जवाब मिलेगा अरे नहीं दहेज लेना गलत है, लेकिन शादी कि बात आते ही पहले तो लड़के वाले बोलते हैं, अरे हमें कुछ नहीं चाहिए आप बस हमारे बारातियों का स्वागत जरा ठीक तरीके से कर दीजिये वैसे भी आप जो भी दोगे अपनी बेटी को ही दोगे वैसे भी हमें तो कुछ नहीं चाहिए। वास्तव में यही तो अप्रत्यक्ष रूप से दहेज कि मांग होती है।
समाज में फैली इस बुराई को रोकने के लिए हमें, आपको, सभी युवा वर्ग को इसके खिलाफ जागरूक होना होगा न तो दहेज लेना है और ना ही दहेज देना है, जिस शादी में दहेज लिया या फिर दिया जा रहा है उस शादी में शामिल ना होने का प्रण लें, अगर हो सके तो वर पक्ष और कन्या पक्ष दोनों को ही समझाएं।
दहेज प्रथा के खिलाफ 498- ए के तहत कार्यवाई का प्रावधान है। इस धारा को आम बोलचाल में ” दहेज के लिए प्रताड़ना ” के नाम से भी जाना जाता है। इस नियम के बारे में अनपढ़ व गरीब वर्ग को जानकारी दें जिससे कि लड़के वाले अगर शादी में दहेज के लिए जोर डालें तो वह इस बुराई के खिलाफ आवाज बुलंद करें। समाज में इस धारा के बारे में जानकारी होनी चाहिए कि किसी भी कानूनी नियम का गलत इस्तेमाल न करें, क्योंकि बहुत सी जगह ऐसे मामले भी आते हैं कि जहाँ फर्जी मामले दर्ज हुए जिनमें कि दहेज़ प्रथा के केस में महिलाओं ने अपने पति को फंसाकर जेल करवा दी। दहेज प्रथा पर निबंध कक्षा 9 10 11 के लिए
लोगों को तथा हम, आपको यह कदम भी उठाना चाहिए कि अगर किसी घर में दहेज़ के कारण किसी महिला की मौत हो जाये या फिर उस महिला को तलाक दे दिया जाये तो उस लड़के की शादी ना करवाएं, इस नियम को जरूरी तौर पर लागू किया जाये, मुझे विश्वास है कि ऐसा कदम उठाने से काफी हद तक बहुत सी बेटी ना तो मौत के घाट उतारी जाएँगी, और ना ही घर से निकाली जाएँगी।
दहेज प्रथा में दोषी कौन – समाज में फ़ैली इस बुराई का जिम्मेदार कौन है खुद समाज, सरकार या फिर खुद नारी। दहेज प्रथा पर निबंध कक्षा 9 10 11 के लिए
समाज – समाज उन शक्तिशाली व्यक्तियों का समूह है जो वक्त के अनुसार अपने हित में नियम बनाते है और तोड़ देते है। उनके इन्ही नियमों में कभी कभी महिलाओं को प्राथमिकता नहीं दी जाती है। दहेज़ प्रथा में समाज को जिम्मेदार नहीं माना जाता है। दहेज़ के लिए किसी की बेटी की हत्या कर या तलाक देकर वह व्यक्ति फिर से उसी समाज में विवाह भी कर लेता है। ऐसा कौन सा समाज है जो हत्यारों की शादी करने की इजाजत दे देता है फिर से जुर्म करने के लिए ।
सरकार – इस देश में बहुत आसानी से विवाह भी हो जाता है इसलिए हमारी न्याय व्यवस्था तलाक देने में माहिर है दहेज़ प्रथा की मूल जड़ समाज में है और इस जड़ को खत्म करने के बजाय सरकार कड़े कानून बनाकर अपने आप को इस जिम्मेदारी से मुक्त कर लेती है।
सरकार द्वारा बनाये गए नियम 498– ए के तहत पति को दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल की सजा का प्रावधान हैं। दहेज़ के कारण लड़की भले ही मर जाये आदमी 3 साल में बाहर और वही आदमी दूसरी शादी बड़ी शान से करता है। और उससे भी बड़े दोषी वे लोग है जो उस आदमी की दूसरी शादी कराते है तथा अपनी बेटी उसे देते है।
नारी जाति – दहेज प्रथा को बढ़ावा देने में खुद औरत का भी बहुत बड़ा योगदान है, क्योंकि अगर कोई माँ खुद बोले की मैं अपने बाटे की शादी में दहेज़ नहीं लेने दूंगी और ना ही बेटी की शादी में दहेज दूँगी, लेकिन इसके विपरीत एक लड़के की माँ खुद दहेज के लिए मांग करती है कि पड़ोसन की बहू इतना गहना लाई, उतना नगद लाई। मुझे अपने बेटे की शादी में पड़ोसन से ज्यादा दहेज चाहिए। मुझे सोने की चैन चाहिए मेरी बेटी और दामाद को भी गहना चाहिए।
इसके विपरीत अगर लड़की अपने साथ सास के मन मुताबिक गहना नहीं लाती है तो सास ननद उसे ताना देती हैं और प्रताड़ित करती हैं। बहू से जेवर और दहेज मंगाने के लिए खुद तो बहू को तंग करती ही है और बेटे को भी घरेलू हिंसा के लिए उकसाती है।
निष्कर्ष – दहेज प्रथा केवल एक सामाजिक बीमारी ही नहीं बल्कि अनैतिक भी है। इसलिए इस प्रथा को पूर्ण रूप से बंद करने के लिए समाज की अंतरात्मा को पूरी तरह जगाने की जरूरत है। जिससे कि समाज में निम्न वर्ग के लोग भी अपनी बेटियों से काम कराने के बजाय उन्हें शिक्षित करने पर ध्यान दें।
दोस्तों आपको यह दहेज प्रथा पर निबंध कैसा लगा अपनी प्रतिक्रया जरूर व्यक्त करें
दहेज प्रथा पर निबंध पढ़ने के लिए धन्यवाद!
Reality of the society. Log modern toh ho gaye hai lekin soch vahi ki vahi hai conservative … need to improve us all great
दहेज लेना या देना दोनो ही कानून के लिए गुनाह है। ये हमारे समाज की इक बहुत बड़ी बुरीई है। आज कल इंसान तो मॉडर्न हो गए लेकिन उनकी सोच दहेज के मामले में अभी बहुत गलत है
Really good,but both party are responsible for this
दहेज़ एक सामाजिक अपराध हैं जब भी इस कारण किसी लड़की को जान गँवानी पड़ती हैं तो तरस आता हैं उस नौजवान पर कि अपने आपको मर्द कहने वाला असल में कायर हैं उसके कन्धों में इतना बल नहीं कि एक परिवार बना सके .जब दम नहीं तो स्वीकार करों यूँ औरत के जीवन का फैसला करने का कोई हक़ नहीं हैं . बेटी के माता पिता को उसे पढ़ाकर अपने पैरों पर खड़ा करने का काम करना चाहिए ना कि कुछ चंद रुपये देकर उसे किसी के हवाले क्यूंकि आपका यह सोचना कि इस सबके बाद आपकी बेटी खुश हैं या आपके कन्धों पर उसका कोई बोझ नहीं, तो आप गलत हैं . ना बेटी खुश हैं और उसके दुःख का भार, आप पर जिंदगीभर हैं.