देव दिवाली (कार्तिक पूर्णिमा) क्या है? देव दिवाली का महत्व

देव दिवाली (कार्तिक पूर्णिमा) क्या है? देव दिवाली का महत्व 

हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। पूरे कार्तिक महीने में पूजा, अनुष्ठान और दीपदान का विशेष महत्व होता है। जानिए क्या है कार्तिक पूर्णिमा(देव दीवाली) और यह क्यों मनाई जाती है?

देव दिवाली (कार्तिक पूर्णिमा) क्या है? और यह क्यों मनाई जाती है?

देव दीवाली यानी कि कार्तिक पूर्णिमा दीवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। कहा जाता है कि देव दीपावली के दिन देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है और उनके स्वागत में धरती पर दीप जलाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन शाम के समय शिव मन्दिर में भी दीप जलाए जाते हैं । शिव मन्दिर के अलावा अन्य मंदिरों में , चौराहे पर और पीपल के पेड़ व तुलसी के पौधे के नीचे भी दीए जलाए जाते हैं।

देव दिवाली (कार्तिक पूर्णिमा) क्या है? देव दिवाली का महत्व

दीपक जलाने के साथ ही इस दिन भगवान शिव के दर्शन करने और उनका अभिषेक करने की भी परंपरा है। ऐसा करने से व्यक्ति को ज्ञान और धन की प्राप्ति होती है। साथ ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है और आयु में बढ़ोतरी होती है।  देव दिवाली (कार्तिक पूर्णिमा) क्या है? देव दिवाली का महत्व

वाराणसी ( काशी) में देव दिवाली मनाने का कारण-

वैसे तो पूरे भारत में ही काफी धूमधाम से कार्तिक पूर्णिमा किसी ना किसी रूप में मनाई जाती है, लेकिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में कार्तिक पूर्णिमा देव दिवाली के नाम से प्रसिद्ध है और वाराणसी (काशी) में यह त्यौहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है। वाराणसी शहर की देव दिवाली देखने के लिए विदेशों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। देव दिवाली (कार्तिक पूर्णिमा) क्या है? देव दिवाली का महत्व

काशी में देव दीपावली मनाने का कारण भगवान से जुड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं को परेशान करने के लिए त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना कब्जा जमा लिया। माना जाता है कि त्रिपुरासुर ने प्रयाग में ही काफी दिनों तक तप किया था और उसके इस तप के कारण तीनों लोक जलने लगे ।

इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिया और वरदान मांगने के लिए कहा , उसने कहा कि उसे कोई देवता , पुरुष , स्त्री , जीव , जंतु , पक्षी , निशाचर ना मार पाए । इस वरदान को पाने के बाद त्रिपुरासुर अमर हो गया । कोई भी देव उसे नहीं मार सकता था , इसलिए विष्णु ने भी उसका वध करने से मना कर दिया , लेकिन विष्णु ने सभी देवों को शिव के पास जाने के लिए कहा।  

ब्रह्मा जी और सभी देव भगवान शिव के पास पहुंचे और त्रिपुरासुर के वध के लिए उनसे प्रार्थना की। महादेव तीनों लोकों में त्रिपुरासुर को ढूंढने के लिए निकल पड़े। इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोषकाल के समय अर्धनारीश्वर के रुप में त्रिपुरासुर का वध कर दिया।

इसके बाद से काशी में सभी देवताओं ने भगवान शिव की विजय की खुशी में दीप जलाएं। जोकि देव दीपावली के नाम से जानी जाती है। यहां पर पहली बार 1915 में हजारों की संख्या में दीप जलाकर देव दीपावली मनाई गई थी।

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देव दिवाली (कार्तिक पूर्णिमा) का महत्व-

हिंदू धर्म में कार्तकि पूर्णिमा का विशेष महत्व है। पूरे कार्तिक माह में पूजा , अनुष्ठान , जप , तप और दीपदान का विशेष महत्व होता है। कार्तिक माह में ही देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था और इसी महीने में ही भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागे थे। ऐसी मान्यता है कि देव दिवाली के दिन देवी – देवता पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाते हैं। इस मौके पर गंगा घाटों को सजाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो देव दिवाली के दिन गंगा नदी में स्नान ध्यान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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