Basant Ritu par kavita in Hindi

Basant Ritu par kavita in Hindi
Basant Ritu par kavita in Hindi

Basant Ritu par kavita in Hindi

जब फूलों पर बहार आ जाती है पेड़ पौधे भी नई-नई कलियों पत्तियों से सज उठते हैं। खेतों में सरसों के फूल ऐसे  लगते है मानो सोना चमक रहा हो। जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगती है आम के पेड़ पर फूल ( बौर) आ जाता है, और रंग बिरंगी तितलियां मंडराती हैं। इतना सुंदर दृश्य बसंत ऋतु में चारों ओर दिखाई देता है ।दोस्तों आज हम (Basant Ritu par kavita in Hindi) के माध्यम से बसंत ॠतू पर कुछ कविता प्रस्तुत करने जा रहे हैं

बसंत मनमाना

 छोटे-छोटे खरगोशों से उठा उठा सिर बादल

किसको पल पल झांक रहे हैं आसमान के पागल ?

ये कि पवन पर, पवन कि इन पर फेंक नजर कि डोरी ।

खींच रहे हैं किसका मन ये दोनों चोरी-चोरी?

फ़ैल गया  है पर्वत शिखरों तक बसंत मनमाना ,

पत्ती, कली , फूल , डालों में दिख रहा मस्ताना ।।

 

नई नई कोपलें

नई नई कोपलें, नई कलियों से करती जोरा जोरी।

चुप बोलना, खोलना पंखुड़ी, गंध बह उठा चोरी चोरी

उस सुदूर झरने पर जाकर, हरने के दल पानी पीते

निशि की प्रेम कहानी पीते, शशि की नव- अगवानी पीते।

उस अलमस्त पवन के झोंके ठहर- ठहर कैसे लहराते।

मानो अपने पर लिख लिखकर स्मृति की याद- दिलाने लाते।

माखनलाल चतुर्वेदी।

वीरों का कैसा हो बसंत

आ रही हिमालय से पुकार

है उधति गरजता बार बार

प्राची पश्चिम भू नभ  अपार

 सब पूछ रहे हैं  दिग दिगंत।

वीरों का कैसा हो बसंत

फूली सरसों ने दिया रंग

मधु लेकर आ पहुंचा अनंग

वसु वसुधा पुलकित अंग अंग

है वीर देश में किंतु कंत

वीरों का कैसा हो बसंत

भर रही कोकिला इधर तान

मारु बाजे पर उधर गान

है रंग और रण का विधान

मिलने को आए आदि अंत

वीरों का कैसा हो बसंत।

गलबाहें हो या कृपाण

चल चितवन हो या धनुष बाण।

हो रसविलास या दलित त्राण

अब यही समस्या है दुरंत।

वीरों का कैसा हो बसंत।

कह दे अतीत अब मौन त्याग,

लंके तुझ में क्यों लगी आग,

ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग

बतला अपने अनुभव अनंत।

वीरों का कैसा हो बसंत।

हल्दीघाटी के शिलाखंड,

ऐ दुर्ग के प्रश्न सिंहगढ के प्रचंड।

राणा ताना का कर घमंड,

दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत।

वीरों का कैसा हो बसंत।

भूषण अथवा कवि चंद नहीं,

बिजली भरदे वह छंद नहीं।

है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं

फिर हमें बताएं कौन हंत।

वीरों का कैसा हो बसंत।

सुभद्रा कुमारी चौहान

बसंत ऋतु है आई

 देखो बसंत ऋतु है आई।

अपने साथ खेतों में हरियाली लाई।।

किसानों के मन में खुशियां छाईं।

घर घर में है हरियाली छाई।।

हरियाली बसंत ऋतु में आती है।

गर्मी में हरियाली चली जाती है।।

हरे रंग का उजाला हमें दे जाती है।

यही चक्र चलता रहता है।।

नहीं किसी को नुकसान होता है।

देखो बसंत ऋतु आई है।।

लो आ गया बसंत

लो आ गया बसंत,

पतझड़ को नवजीवन मिला।

प्रकृति के मुरझाए अधरों पर,

मुस्कानों का फूल खिला।

अब तो पेड़ों पर बौर लगेंगे,

सरसों के पीले फूल खिलेंगे।

डालों पर बोलेगी कोयल,

पक्षियों का कलरव होगा।

मंद मंद सी बयार,

मन में सबके रस सा घोलेगी।

मन में जो राग छुपे,

जाने कितने अनुराग छिपे।

अधरो पर लाकर,

सबके मन को अपना कर लेगी।

बसंत ऋतु मनुष्य के लिए प्रकृति का उपहार है। ॠतुओं में श्रेष्ठ होने के कारण बसंत को हम ऋतुराज भी कहते हैं। सभी वृक्ष और लताएं नव पल्लव और नव कुसुमों (नए फूलों ) से सज कर झूमने लगती हैं। प्रकृति को नया जीवन मिलता है। प्रकृति का यह सुंदर और मनमोहक दृश्य देखते ही बनता है।

दोस्तों अगर आपको (Basant Ritu par kavita in Hindi) प्रस्तुति अच्छी लगी हो तो घंटी के बटन को दबाएं और अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य दें।

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